पूर्वांचल में मतदान से पहले वोट ट्रांसफर के लिए मायावती-अखिलेश ने बनाई ये नई रणनीति

संक्षेप:

  • लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण की वोटिंग के बाद उत्तर प्रदेश में अब सियासी रणभूमि का मैदान पूर्वांचल बन गया है.
  • अगले दोनों चरण की लड़ाई केंद्र की सत्ता का भविष्य तय करेगी.
  • कांग्रेस नए राजनीतिक समीकरण के जरिए पूर्वांचल में दमदार वापसी की कोशिश में है

आजमगढ़: लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण की वोटिंग के बाद उत्तर प्रदेश में अब सियासी रणभूमि का मैदान पूर्वांचल बन गया है. अगले दोनों चरण की लड़ाई केंद्र की सत्ता का भविष्य तय करेगी. ऐसे में बीजेपी, कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन ने पूरी ताकत लगाए हुए हैं. सत्ताधारी बीजेपी अपना किला बचाने में जुटी है तो कांग्रेस नए राजनीतिक समीकरण के जरिए पूर्वांचल में दमदार वापसी की कोशिश में है. जबकि सपा-बसपा गठबंधन के सामने अपने वोटों के ट्रांसफर की बड़ी चुनौती है, जिसके चलते अखिलेश यादव और मायावती ने दोनों नेताओं ने नई रणनीति बनाई है.

लोकसभा चुनाव के छठें और सातवें चरण में उत्तर प्रदेश की 27 सीटों पर वोटिंग होनी हैं, जिनमें से बीजेपी को 26 और सपा को एक सीट 2014 में मिली थी. इस बार के लोकसभा चुनाव में इन सीटों के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती ने अपने-अपने वोटबैंक को एक दूसरे को ट्रांसफर कराने के लिए खास प्लान बनाया है. इसके तहत अखिलेश यादव बसपा उम्मीदवार को तो मायावती सपा प्रत्याशी को जिताने का बीड़ा उठाया है. अखिलेश यादव ने बदली हुई नई रणनीति के तहत अब उन सीटों पर खास फोकस कर रहे हैं, जहां बसपा उम्मीदवार चुनावी मैदान में है. सपा अध्यक्ष ने छठे चरण की सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ और श्रावस्ती जैसी सीट पर अकेले जाकर बसपा के पक्ष में चुनाव प्रचार किया है. वहीं, बसपा सुप्रीमों मायावती ने फैजाबाद, बाराबंकी, गोंडा और बहराइच जैसी तमाम सीटों पर सपा उम्मीदवार के पक्ष में जाकर प्रचार किया है.

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दरअसल लोकसभा चुनाव के सपा-बसपा गठबंधन बनने के समय से ही वोट ट्रांसफर को लेकर राजनीतिक पंडित आशंका जता रहे थे. शुरुआती दौर की वोटिंग ट्रेंड को देखें तो सपा-बसपा का वोट एक दूसरे को आसानी से ट्रांसफर होता दिखा. लेकिन चौथे और पांचवें चरण की वोटिंग में कई ऐसी लोकसभा सीटें हैं, जहां पर सपा और बसपा के वोट ट्रांसफर में दोनों पार्टियों की काफी दिक्कतें देखने को मिली हैं. बुंदेलखंड की बांदा लोकसभा सीट गठबंधन के तहत सपा के खाते में गई है, जहां से श्यामा चरण गुप्ता चुनाव मैदान में थे. वहीं, 2014 में बसपा के प्रत्याशी रहे आरके पटेल ने इस बार बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोंक रहे थे. इसी तरह से 2014 में सपा के उम्मीदवार रहे बाल कुमार पटेल कांग्रेस से मैदान में थे. इस तरह से आरके पटेल ने बसपा के वोटर को अपने पाले में साधने का काम किया तो बाल कुमार पटेल ने सपा के वोटबैंक को अपने साथ जोड़ने की कवायद की है. बांदा संसदीय सीट की तरह अकबरपुर लोकसभा सीट गठबंधन के तहत बसपा के खाते में गई है. यहां से बसपा से निशा सचान चुनावी मैदान हैं. वहीं, आखिरी वक्त में सपा का साथ छोड़कर महेंद्र सिंह यादव प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से उतर कर सपा के वोटबैंक को अपने पाले में कर लिया था. ऐसे ही फतेहपुर लोकसभा सीट पर भी सपा का वोट बैंक बसपा को ट्रांसफर होता नजर नहीं आया है, क्योंकि सपा से सांसद रहे राकेश सचान इस बार कांग्रेस से चुनावी मैदान में थे.

अखिलेश यादव और मायावती ने इस बात को समझते ही अपनी रणनीति में बदलाव किया और दोनों नेता एक साथ रैलियां करने के साथ-साथ अलग-अलग सीटों पर व्यक्तिगत तौर पर जनसभाएं करके अपने-अपने वोट को ट्रांसफर करने की रणनीति बनाई है. ऐसे में देखना होगा कि सपा-बसपा की यह रणनीति कितनी सफल रहती है.

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