बेलगाम बीजेपी नेता, मोदी की नसीहत- चेतावनी गीदड़ भभकी

संक्षेप:

  • जनता ने मोदी को वोट दिया है तो जबाबदेही भी उन्हीं की बनती है
  • मानसिक संतुलन खोना पार्टी और पीएम मोदी के लिए ठीक नहीं है
  • सत्ता के नशे में चूर नेताओं के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें पीएम मोदी

By: मदन मोहन शुक्ला

क्या कारण है कि बार-बार पीएम मोदी के चेताने पर भी सत्ता के नशे में चूर बीजेपी नेता अपनी अशोभनीय हरकतों से बीजेपी और मोदी के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहे हैं। इस मुकाम तक लाने में मोदी ने कितनीे मेहनत की। अगर यूं कहा जाए मोदी है तो बीजेपी है। यह जितने बयानवीर है उनका अस्तित्व केवल मोदी कीे वजह से है क्योंकि जनता ने मोदी को वोट दिया है तो जबाबदेही मोदी की ही बनती है।

नरेन्द्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले संबोधन में अपनी पार्टी के नेताओं को संयमित भाषा की नसीहत देते हुए छपास और दिखास से दूर रहने को कहा था लेकिन इसका असर सिफर रहा नेता बयान देते रहे पार्टी के करता धर्ता मौन साधे रहे मानो यह उनकी मौन सहमति हो। कुछ उदाहरण बानगी है जैसे - बीजेपी के ललितपुर से विधायक रामरतन कुशवाहा ने झाँसी के सांसद अनुराग शर्मा के सम्मान समारोह में अपने कार्यकर्तायों  से कह दिया अगर सरकारी कर्मचारी आपकी बात नहीं सुनते तो जूते से मारिये। बीजेपी, विपक्ष  की इस घेराबन्दी से निकल भी नहीं पायी थी। बलिया के विधायक सुरेंद्र सिंह जो बीजेपी के नगीना हैं या नमूना उन्होंने ममता बनर्जी की तुलना लंकिनी से कर दी। इसकी तपिश कम भी नहीं हुई थी इन महोदय के बेलगाम बोल फिर प्रस्फुटित हो गए कह दिया कि वर्ष 2024 में आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होते होते पूरी संभावना है कि भारत हिन्दू राष्ट्र घोषित हो जाएगा। ऐसे यह इनकी पहली हरकत नहीं है लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज रेप के आरोपित उन्नाव के विधायक कुलदीप सिंह से मिलने जेल चले गए। रेप आरोपित विद्यायक को यशस्वी और लोकप्रिय नेता  कहा। बीजेपी ने कोई कार्रवाई नहीं की।

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ताज़ा प्रकरण बीजेपी के कद्दावर नेता एवं राष्ट्रीय  महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे इंदौर के विधायक आकाश विजयवर्गीय की गुण्डागर्दी की, खुलेआम नगर निगम के अधिकारी की क्रिकेट बैट से पिटाई कर दी और कहा पहले निवेदन,फिर आवेदन और फिर दनादन। खुद कैलाश विजयवर्गीय अपने बेटे का बचाव करते दिखें। जब  न्यूज़24 के पत्रकार ने उनसे इस सन्दर्भ में सवाल पूछा तो वह भड़क गए, पत्रकार की हैसियत व औकात पूछने लगें। सत्ता के नशे में चूर  यह भूल गए की वह जनता के चुने प्रतिनिधि है और लोकतंत्र में जनता ही सर्वोप्रिय है इसीलिये जनता ने जो हैसियत दे रखी है वह छीन भी सकती है । इसीलिये मानसिक संतुलन खोना पार्टी और आपके लिए ठीक नहीं है।

इस प्रकरण में मोदी जी ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा "कोई प्रतिनिधि ऐसा आचरण कैसे कर सकता है। यह मनमानी नहीं चलेगी। यह घमंड,यह दुर्व्यवहार स्वीकार नहीं। ऐसे लोगों को पार्टी से निकाल देना चाहिए। फिर चाहे वह किसी का भी बेटा हो। कारण बताओ नोटिस जारी करने की तैयारी है इसके बाद कोई अनुशासत्मक कार्रवाई के अंतर्गत पार्टी से निकाला जाएगा।  इसमें संदेह है क्योंकि पहले भी नोटिस दी गयी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस संदर्भ में प्रज्ञा ठाकुर का ताज़ा मामला है नोटिस के बाद क्या कार्रवाई हुई किसी को पता नहीं। जबकि गोडसे वाले बयान पर मोदी ने कहा था इस कृत्य के लिए मैं कभी प्रज्ञा ठाकुर को दिल से माफ़ नहीं कर पाउँगा फिर भी कार्रवाई क्यों नहीं हुई। मतलब ज़ुबान पर कुछ और दिल  में कुछ और यही आशय हुआ। इस मामले में,मैं मायावती की तारीफ़ करूंगा उनकी पार्टी में अगर किसी ने अपने कृत्य से पार्टी की अस्मिता को ठेस पहुंचाई है तो सज़ा मिलनी है लेकिन ऐसा बीजेपी में नहीं, बस जुबान से दर्द झलकता है ।

मोदी का इंदौर वाले कांड में कड़ा रुख कहना "अगर कोई गलती करता है तो उसके लिए पश्चाताप भी होना चाहिए लेकिन उसका स्वागत किया जाना बहुत गलत है।" लोकसभा चुनावों के दौरान सांसद प्रज्ञा ठाकुर समेत कुछ अन्य नेताओं द्वारा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देश भक्त बताएं जाने पर भी नरेंद्र मोदी ने इसी तरह के सख्त तेवर अपनाएं थे । ऐसे सैंकड़ों प्रकरण है लेकिन मोदी एंड कंपनी कार्रवाई से परहेज़ करती रही।

इसमें चाहे गिरिराज सिंह हों या मेनका गांधी या अन्य लेकिन मोदी ने कार्रवाई के मामले में मौन धारण कर लिया था। गौ रक्षकों की उन्मादी भीड़ राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ में बीजेपी के शासनकाल में आये दिन मुसलमानों को मॉब लीनचिंग में जान से मार रही थी तब मोदी मौन साधे रहे जब सर तक पानी आ गया तब जाकर उन्होंने कहा हिंसा बर्दाश्त नहीं। लेकिन कांड होते रहे लोग मरते रहे लेकिन सरकार चुप रही। तो मोदी जी से आशा करना कि कोई कड़ी कार्रवाई होगी, क्या दिन में सपना देखना साबित होगा?

एक समय जब बीजेपी संघर्ष के दौर से गुज़र रही थी 80 के दशक में इनके केवल दो सांसद थे लेकिन पार्टी में कर्मठ नेता एवं अनुशासित कार्यकर्ता की  उस समय की मेहनत का फल है कि बीजेपी की केंद्र के साथ साथ 16 प्रदेशों में सरकार है। साथ-साथ 11 करोड़ बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ता एवं 35 लाख व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी पर सक्रिय कार्यकर्ता की मेहनत को धूल में मिलाने का काम चंद बड़बोले नेता कर रहे है। अगर शीर्ष के नेताओं ने इनके पर नहीं कतरे तो जनता, पार्टी और शीर्ष के नेताओं को चुनाव में सबक सिखाने में जरा भी देरी नहीं करेगी क्योंकि हम लोग कांग्रेस की दुर्दशा देख रहे है इसलिए यह पार्टी को और मोदी जी को सुझाव है, ऐसे बयानवीरों और सत्ता के मद में चूर नेताओं के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें अगर लंबे समय तक शासन करना है।

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