आजादी के लिए जंग लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी वेदपाल शास्त्री का सौ वर्ष की उम्र में निधन

संक्षेप:

  • नही रहें स्वतंत्रता सेनानी वेदपाल शास्त्री
  • 100 वर्ष की उम्र में हुआ निधन
  • राजकीय सम्मान के साथ किया गया अंतिम संस्कार

मेरठ- ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी की जंग लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी वेदपाल शास्त्री का लंबी बीमारी के चलते सौ वर्ष की उम्र में निधन हो गया। राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। 

गांव डौरली में वेदपाल शास्त्री का जन्म 1921 में हुआ था। उनके पिता लखपत सिंह किसान और माता गंगा देवी गृहणी थीं। रघुवीर शास्त्री और मूल शंकर के साथ 1942 में मेरठ घंटाघर पर तिरंगा लहराते हुए गिरफ्तारी दी थी।  

पहले जिला कारागार मेरठ और इसके बाद आगरा जेल में रहे। उनके निधन से डौरली और आसपास के क्षेत्र में गम का माहौल बन गया। शाम करीब सात बजे उनका पार्थिव शरीर डौरली स्थित आवास पर लाया गया है, जहां पर एसडीएम सरधना अमित भारतीय ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

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राजकीय सम्मान के साथ श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। बड़े बेटे देवराज ने मुखाग्निी दी। जिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिषद के संगठन मंत्री दीपेंद्र जैन, गुरुकुल के प्रिंसिपल डॉ. राजेंद्र कुमार, समाज सेवी शीलेंद्र चौहान, डीएमजी इंटर कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आरके सिंह,  समीर चौहान, अध्यापक गुरुकुल कृष्ण कुमार ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

स्वतंत्रता सेनानी वेदपाल शास्त्री ने आजादी के बाद शिक्षा का उजियारा फैलाया। लाहौर से शास्त्री की पढ़ाई कर लौटे तो गुरुकुल डौरली में संस्कृत के शिक्षक बन गए। इसके बाद 53 साल तक संस्था से जुड़े रहे। शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके कार्य भी लोगों को हमेशा याद रहेेंगे। स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और साहित्यकार के तौर पर उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

वेदपाल शास्त्री डौरली में जन्में, यहीं पर पढ़े और देशसेवा के साथ शिक्षा क्षेत्र में अपनी सेवाएं दी। उन्होंने लाहौर विश्वविद्यालय से शास्त्री की पढ़ाई की थी। लाहौर से लौटकर वह गुरुकुल डौरली में संस्कृत के अध्यापक रहे।

यहीं पर 1972 से 1985 तक प्रधानाचार्य का कार्यभार संभाला। इसके अलावा वह डीएमजी इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य भी रहे। उनके परिवार में तीन पुत्र थे, जिनमें एक की मृत्यु हो चुकी है।

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