मेरठ, 23 नवंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा किए जाने के बाद जाट आरक्षण की आग एक बार फिर सुलगने लगी है, लेकिन इस बार यह आंदोलन सड़क पर नहीं, वोट से लड़ा जाएगा।
जाट आरक्षण संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष यशपाल मलिक ने मंगलवार को आंदोलन के संबंध में घोषणा करते हुए कहा कि सरकार जाटों को कमजोर न समझे और ध्यान रखे कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 125 विधानसभा सीट के साथ ही उत्तराखंड की 15 तथा पंजाब की 100 से अधिक सीट पर जाटों का प्रभाव है।
उन्होंने कहा कि अगले साल जाटों के प्रभाव वाले इन तीनों राज्यों में विधानसभा चुनाव है तथा इन चुनावों में जाटों का वोट उसी दल को जाएगा जो उन्हें आरक्षण देगा।
मलिक ने कहा कि सरकार ने 2015 और 2017 में आरक्षण का वादा किया था जो पूरा किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने जाट समाज के प्रमुख संगठनों, मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की उपस्थिति में केंद्रीय स्तर पर जाट आरक्षण का वादा किया था और 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के आवास पर आरक्षण का भरोसा दिया गया था।
मलिक ने कहा कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी जाट समाज से वादे किए गए।
मलिक ने कहा कि इस बार जाट समुदाय आरक्षण की लड़ाई सड़कों पर नहीं, अपने वोट के निर्णय से करेगा।
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