इस कारण हुआ था गोरखपुर दंगा, सीएम योगी पर नहीं चलेगा मुकदमा

संक्षेप:

  • गोरखपुर दंगा मामला
  • मुकदमा चलाये जाने की मांग वाली याचिका खारिज
  • परवेज परवाज और असद हयात ने दाखिल की थी याचिका

इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट से यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को बड़ी राहत मिली है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सीएम योगी को बड़ी राहत देते हुए गोरखपुर में वर्ष 2007 में हुए साम्प्रदायिक दंगे के मामले में खिलाफ मुकदमा चलाये जाने और दंगे की सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है।

सीएम योगी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी न दिए जाने को लेकर राज्य सरकार की दलीलों को सही मानते हुए जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस ए सी शर्मा की डिवीजन बेंच ने याचिका खारिज की है।

कोर्ट के इस फैसले से सीएम योगी को बड़ी राहत मिल गई है। परवेज परवाज और असद हयात की ओर से दाखिल याचिका में साम्प्रदायिक दंगे की जांच सीबीआई से कराए जाने की भी मांग की गई थी। लेकिन हाईकोर्ट में कई महीने चली मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने सीएम योगी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी न दिए जाने के राज्य सरकार की दलीलों को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी है।

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कोर्ट ने इस मामले में पिछले साल 18 दिसम्बर को अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था। गौरतलब है कि साल 2007 की 27 जनवरी को गोरखपुर में साम्प्रदायिक दंगा भड़का था। दंगे में अल्पसंख्यक समुदाय के दो लोगों की मौत हुई थी, जबकि कई लोग घायल भी हुए थे।

आरोप था कि दंगा तत्कालीन बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ, बीजेपी नेता व वर्तमान में मोदी सरकार में मंत्री शिव प्रताप शुक्ल, तत्कालीन विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और तत्कालीन मेयर अंजू चौधरी द्वारा रेलवे स्टेशन के पास भड़काऊ भाषण देने के बाद भड़का था।

विवाद मुहर्रम पर ताजिये के जुलूस के रास्ते को लेकर था। इस मामले में योगी आदित्यनाथ और शिव प्रताप शुक्ल समेत बीजेपी के कई नेताओं के खिलाफ सीजेएम कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज हुई थी। एफआईआर में कई दूसरी गंभीर धाराओं के साथ ही साम्प्रदायिक आधार पर समाज को बांटने की आईपीसी की धारा 153 A भी शामिल थी। क़ानून के मुताबिक़ 153 A के तहत दर्ज केस में केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति के बाद ही अदालत में मुक़दमे की सुनवाई शुरू हो सकती है।

यूपी सरकार ने चार मई 2017 को सीएम योगी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दिए जाने से इंकार कर दिया था। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अदालत में कहा गया कि गृह सचिव के आदेश से साफ़ है कि उन्होंने सीएम के कहने पर यह आदेश जारी किया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो सीएम किसी मामले में खुद आरोपी हो, वह उसी केस में मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इंकार कैसे कर सकता है।

हाईकोर्ट में पिछले काफी दिनों से इस मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने और सीएम योगी व मंत्री शिव प्रताप समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाए जाने की मंजूरी दिए जाने की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई चल रही थी। याचिका गोरखपुर के ही सामजिक कार्यकर्ता परवेज परवाज और असद हयात ने दाखिल की थी।

याचिकाकर्ता की तरफ से अदालत में यह दलील दी गई थी कि किसी को भी अपने ही मुक़दमे में फैसला लेने का कोई हक नहीं है, इसलिए हाईकोर्ट मुक़दमे की मंजूरी के मामले में दखल दें। वहीं कोर्ट का फैसला आने के बाद अब राजनीतिक दलों भी इस मामले में बयानबाजी शुरू कर दी है।

बहरहाल, इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद यूपी के सीएम को जहां बड़ी राहत मिली है। वहीं सत्तारुढ़ भाजपा को अब फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भी इसका फायदा मिल सकता है। हालांकि साल 2007 के गोरखपुर दंगे से ही जुड़े एक अन्य मामले में सीएम योगी को इलाहाबाद हाईकोर्ट से ही एक फरवरी को फौरी राहत मिल चुकी है। 

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