सांसद सावित्री बाई फुले ने दिया बीजेपी से इस्तीफा, बहुत दिलचस्प है सियासी सफर

संक्षेप:

  • बीजेपी को लगा बड़ा झटका
  • बहराइच से सांसद सावित्री बाई फुले ने दिया इस्तीफा
  • बीजेपी समाज में बंटवारे की कर रही साजिश: सावित्री बाई फुले

लखनऊ: लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी को एक बड़ा झटका लगा है. 2014 लोकसभा चुनाव में बहराइच से सांसद चुनी गईं सावित्री बाई फुले ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया है. सावित्री बाई फुले कई मुद्दों को लेकर बीजेपी से नाराज चल रहीं थीं. सावित्री बाई फुले ने इस्तीफा देने के साथ ही बीजेपी पर एक बार फिर हमला बोला.

उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी समाज में बंटवारे की साजिश कर रही है. उन्होंने कहा, `पुन: विहिप, भाजपा और आरएसएस से जुड़े संगठनों द्वारा अयोध्या में 1992 जैसी स्थिति पैदा कर समाज में विभाजन एवं सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा करने की कोशिश की जा रही है. इसलिए आहत होकर मैं भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रही हूं.`

फुले ने कहा कि भाजपा समाज में विभाजन पैदा करने का प्रयास कर रही है. एक दिन पहले ही भगवान हनुमान के विवाद में कूदते हुए सावित्रीबाई फुले ने सीएम योगी के दावों का समर्थन किया था. उन्होंने कहा था कि हनुमान जी दलित थे. मगर एक कदम आगे बढ़कर उन्होंने यह भी कहा कि हनुमान जी मनुवादियों के गुलाम थे.

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इस मौके पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनसे जुड़ी बातें...

छह साल की उम्र में विवाह के लिए मजबूर फूले की जिंदगी एक घटना से पूरी तरह बदल गई. बाल विवाह के बावजूद फूले छह साल की उम्र से ही समाज सेवा से जुड़ गईं थी, लेकिन राजनीतिक जीवन की शुरुआत आठ साल की उम्र से हुई.

16 दिसंबर 1995 को एक सामाजिक आंदोलन के दौरान पीएसी की गोली उन्हें लगी और उन्हें लखनऊ जेल ले जाया गया. तब उन्होंने तय किया कि अब सिर्फ समाज सेवा करेंगी. जेल से लौटने के बाद फुले ने अपने पिता से बात की और ससुराल पक्ष वालों को बुलाकर अपनी इच्छा जाहिर की. सबकी सहमति के बाद उन्होंने छोटी बहन की शादी अपने पति से कराई और पूरी तरह से संन्यास धारण कर बहराइच के जनसेवा आश्रम से जुड़ गईं.

राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट फुले की राजनीतिक कहानी भी उनकी निजी जिंदगी की तरह ही है. उन्होंने बताया कि `जब वह आठवीं पास की तो उन्हें सरकारी योजना से 480 रुपये का स्कॉलरशिप मिला था. इसे स्कूल के प्रिंसिपल और शिक्षक ने जबरन अपने पास रख लिया. उन्होंने इसका विरोध किया.

इस पर स्कूल से उनका नाम काट दिया गया और तीन साल घर बिठा दिया गया. उनकी राजनीतिक जीवन की शुरुआत वहीं से हुई. फुले के राजनीतिक करियर की शुरुआत 2001 में हुई, जब वे पहली बार बहराइच जिला पंचायत की सदस्य चुनी गईं. इसके बाद वे 2005 और 2010 में भी इस पद के लिए चुनी गईं.

2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर बलहा सीट से चुनाव जीतकर पहली बार विधायक और 2014 में पहली बार सांसद बनी.  2007 में भी वे चरदा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ी थीं, लेकिन 1,070 वोटों से हार गईं. बहराइच संसदीय क्षेत्र से अपनी जीत में वे महिलाओं की भूमिका मानती हैं. वे महिलाओं के हित में काम करती हैं.

बीजेपी से पहले वे बीएसपी में रह चुकी हैं. वे बताती हैं कि जीवन में संघर्ष कर आज लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर तक पहुंची हैं. फूले ने जब संन्यास धारण किया तो आश्रम में रहकर उन्होंने मजदूरी से लेकर खेतों में फसल की कटाई और घर-घर से भिक्षाटन कर जीवन का निर्वाह किया है.

साध्वी होने की वजह से अध्यात्म की किताबों में रुचि और खेलकूद में क्रिकेट पसंद है. गुजरात विधानसभा चुनाव में जूनागढ़, राजकोट और सूरत प्रचार में गईं थी. वहीं मोदी से उनकी पहली मुलाकात हुई थी. उन्होंने कहा कि जब लोकसभा चुनाव का समय आया तो उन्होंने मोदी के सामने लोकसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की, तो मोदी ने कहा, `बहराइच से क्यों, गुजरात आ जाओ मैं तुम्हें वहां से लड़ा सकता हूं.` फिर भी फुले कहती ने अपनी जन्मभूमि बहराइच से ही लड़ने का अनुरोध किया.

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