NYOOOZ Special: एक शख्स जिसे शरीर संरचना की जिज्ञासा ने बना दिया डॉक्टर

संक्षेप:

  •  BHU के साइटेटिक्स विभाग के प्रोफ़ेसर, डॉ संजय गुप्ता
  • पिता को भारत की मिट्टी से बेहद प्यार होने की वजह से वो वापस लखनऊ आये
  • आगे की शिक्षा काशी हिन्दू विश्विद्यालय के मेडिकल साइंस डिपार्टमेंट से पूरी की

 शरीर के संरचना में अनेक ऐसे अंग हैं जो शरीर के संचालन में बेहद अहम भूमिका निभाती है। यूं तो शरीर संचालन में सभी अंग का आपसी तारतम्य का ख़ास भूमिका होती है लेकिन मानव शरीर के ऊपरी भाग में स्थित दिमाग का दुरुस्त होना उतना ही जरुरी है जितना सांस लेना। मानव शरीर के तमाम विकारों के इलाज में डाक्टर की अहम भूमिका होती है शरीर के जटिल संरचना में से मस्तिक का विकार भी एक है। ग्रामीण परिवेश या फिर अशिक्षा के अभाव में आज भी जन मानस का बड़ा हिस्सा मानसिक विकार को भुत प्रेत या हवा से जोड़ कर देखता है। आइए आज आपको NYOOOZ ऐसे ही एक डॉक्टर की दांस्ता बतायेगा जो खुशहाल भारत का सपना लिए पिछले 24 साल से न केवल मरीजों की सेवा कर रहा है बल्कि छुटियों में देश विदेश का सफर कर इंसान को खुश रहने स्वस्थ रहने का गुरु मन्त्र  भी देता है। 

कभी-कभी मेरे दिल में ये ख़्याल आता हैं कि दिमाग भी कितने कमाल की चीज हैं यह हर समय हमारे हुक्म के लिए तैयार रहता हैं। कई बार हम थक कर कहते हैं कि आज मेरा दिमाग काम नही कर रहा है जबकि मस्तिष्क कभी थकता ही नही हैं और जब थकता है तो .......  BHU के साइटेटिक्स विभाग के प्रोफ़ेसर, डॉ संजय गुप्ता वो नाम है जो बारहवीं तक की शिक्षा अपने पिता शिव कुमार गुप्ता के नौकरी की वजह से U. S. A के अखाना संपैन में प्राप्त की लेकिन पिता को भारत की मिट्टी से बेहद प्यार होने की वजह से वो वापस लखनऊ आये और MBBS  की और आगे की शिक्षा काशी हिन्दू विश्विद्यालय के मेडिकल साइंस डिपार्टमेंट से पूरी की। सन् 1993 के मार्च महीने में BHU के सर सुन्दरलाल चिकित्सालय में बतौर प्रवक्ता अपनी सेवा शुरू किया। जिंदगी के इस डगर के बारे में डॉ गुप्ता से खुद जाने। 

 शिक्षकों का ताना और दोस्तों का टोकाटोकी 

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डॉ गुप्ता भारत में जरूर पढ़ रहे थे लेकिन शुरूआती दिनों में दोस्तों और शिक्षकों से मैनर को लेकर खासी परेशानी हुई। विदेशों में क्लास रूम में बैठकर बात करने और शिक्षक के नाम से सम्बोधन किया जाना यहां इन चीजों को बैडमैनर माना जाता है। लेकिन शिक्षकों के ताने और दोस्तों के टोकाटोकी के बाद इसे प्रैक्टिस में लाने में ख़ासा समय लगा। 

 जिज्ञासा ने बनाया डॉक्टर 

प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा के दौरान स्वभाव से शांत रहने वाले संजय भी दूसरे बच्चों की तरह जिज्ञासु रहे कोई भी चीज चाहे प्राकृतिक हो या मानव चालित उसे ठीक से समझने और जानने की अलग ललक रही। बढ़ते उम्र के साथ ये पिपासां और परवान चढ़ी और ये जिज्ञासा ही दिमाग या मस्तिष्क के सफल डॉक्टर बनने का कारण बना। 

  छत की वो घटना 

पुरानी यादों के पन्नों में एक पन्ना ऐसा भी रहा जो बार बार दिल दिमाग में कौंधता है और साथ ही आज भी तूफ़ान ला देता है। बात उन दिनों की है जब डॉ संजय बतौर रेजिडेंट मानसिक रोगियों के बीच काम कर रहे थे एक दिन सूचना मिलती है कि एक पेशेंट चिकित्सालय के छत पर जा पहुंचा है और आत्महत्या करने की बात कह रहा है। दिक्क्त यह आ रही थी कि उस वक्त अस्पताल में कोई भी वरिष्ठ डॉक्टर मौजूद नहीं था लिहाजा सिस्टर ने डॉ गुप्ता को मरीज तक चले और किसी तरह बेड तक लाने की बात कही। कशमकश यह थी कि डॉ गुप्ता अभी नए थे और मरीज के व्यवहार को ठीक से समझ नहीं पाए थे डर यह था कि कहीं वो मारपीट न करने लगें। बेहद दबाव और डर के बीच छत पर पहुंच कर अपने इष्ट महादेव को याद करते हुए बुलंद आवाज में नीचे जाने की बात कही। डॉ गुप्ता की डर का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि उस वक्त इनके दिमाग में कल के अखबार की हेडिंग दिख रहा था जिसमें मरीज की मौत और उनके असफलता का विवरण छपा था। खैर ना जाने किस शक्ति ने मरीज पर उनके बातों का असर दिखा और वो अपने बेड पर वापस आ पहुंचा । 

 खुशहाल भारत का है सपना 

 डॉ गुप्ता खुशहाल भारत अभियान के तहत आम लोगों को खुश रहने का गुरु मन्त्र देने का बीड़ा उठा रखा है जिसके तहत डॉ गुप्ता देश विदेश में अब तक पांच लाख लोगों से सीधा संपर्क स्थापित कर सदैव खुश रहने की बात बताते हैं साथ ही दिमाग के रोग को भुंत-प्रेत या बाहरी हवा जैसी दक़ियानूसी बातों से दूर रहने साथ ही लोगों को दूर रखने की भी सलाह देते हैं। यही वजह है कि इन्हें लोग खुशहाली गुरु भी कहते हैं। 

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