वाराणसी में होलिका दहन के लिए काटे जा रहे हरे पेड़

संक्षेप:

  • सुखी लकड़ियां से नहीं हरे पेड़ों से सजाई गई  होलिका
  • होलिका दहन के लिए काटे जाते है हरे पेड़
  • होली से एक दिन पहले जलाई जाती है होलिका  

वाराणसीः सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं पर्यावरण को संतुलित करने के लिए जनजागरण बैठके और योजनाएं बना कर पर्यावरण को दुरुस्त करने में व्यस्त दिखती है तो वहीं दूसरी तरफ हर दूसरे मोहल्ले और कालोनी के पास एक होलिका अवश्य दिखेगा। परंपरा के नाम पर परंपरा का ही मजाक उड़ाती ये होलिकाएं गोवर के कंडे सुखी लकड़ियां की जगह हरे पेड़ से लदी दिखती है।

सरेराह लगने वाली ये होलिकायें प्रशासन पर सवाल खड़ा करती है। आखिर इन होलियारों पर अवैध वन कटाई के खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं करती है। जहां हर साल होली आती है और हम परम्पराओं के अनुसार अपनी सामर्थ से त्योहार में अपनी खुशी पाते है। होली के त्योहार से ही एक और लोक परपरा जुड़ीं है होलिका दहन की।

बसंत पंचमी यानि सरस्वती पूजा के दिन होलिका को विधिपूर्वक पूजन अर्चन कर स्थापित की जाती है और फाल्गुन मास के पूर्णिमा तिथि को इसको पवित्र अग्नि को समर्पित किया जाता है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में गोबर से बनी हुई लकड़ियां भी उपलब्ध हैं। एक आंकड़े के अनुसार वाराणसी में कुल 2181 होलिका लगती है। प्रत्येक होलिका में  8724 क्विंटल लकड़ी जलाई जाती है।

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 जिसके लिए प्रति वर्ष लगभग 2000 हरे पेड़ों की बलि चढ़ती है। एक पेड़ को तैयार होने में 10  से 15 साल लगते हैं। लेकिन होली के पूर्व होलिका के दिन इन पेड़ों की बलि चढ़ जाती है। बता दें की बनारस में आबादी के हिसाब से एक फीसद ही वन क्षेत्र है। वहीं बीएचयू के ज्योतिष विभाग के प्रोफेशर डॉ. सुभाष पांडेय की माने तो होलिका दहन में वेस्ट मेटेरियल जलाने की बातें शास्त्र सम्वत है लेकिन विपरीत इसके शहर में हरे पेड़ों की कटाई कर होलिका जलाई जा रही है।

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