रमजान पर व्यापारी और जनता को रुला रहा GST

संक्षेप:

  • खरीददारी का दौर आने वाले त्यौहार ईद के लिए भी है
  • रमजान के पाक महीने में खरीददारी करने वालों के साथ ही दुकानदारों में भी मायूसी
  • जीएसटी के बाद पहली बार रमजान के महीने में बाजार बेहद ही कमजोर

रमजान का पाक महीना शुरू हो चुका है और इसी के साथ बाजार में खरीददारी का सिलसिला भी शुरु हो चुका है और ये खरीददारी का दौर आने वाले त्यौहार ईद के लिए भी है। ऐसे में लोग देर रात तक भी बाजारों में नजर आते हैं। जहां एक तरफ ईद जैसे त्यौहार के लिए लोग खुश हैं और अपने रमजान का त्यौहार मना रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ रमजान के पाक महीने में खरीददारी करने वालों के साथ ही दुकानदारों में भी मायूसी है। दरअसल मायूसी इसलिए है कि जीएसटी के बाद पहली बार रमजान के महीने में बाजार बेहद ही कमजोर स्थिति से गुजर रहा है।

वाराणसी के दालमंडी के दुकानदार ने NYOOOZ को बताया कि सरकार ने सभी को किसी न किसी नए रूप में पिछले दो से तीन सालों से उलझा रखा है। कभी नोटबंदी हो जा रही है, तो कभी जीएसटी लागू हो जा रहा है। यही वजह है कि इस बार रमजान पर जीएसटी का खासा असर देखने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि खजूर एक ऐसा प्रोडक्ट है, जो रमजान में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। इसे मंगाने के लिए दूसरे मुल्कों से ऑर्डर देना पड़ता है। बाहर से आने की वजह से इन चीजों पर जीएसटी का ज्यादा असर देखने को मिल रहा है। यही वजह है कि जो महंगे प्रोडक्ट थे, वो तो सस्ते हुए हैं, लेकिन जो सस्ते थे वह महंगे हो गए हैं। वहीं सेवई से लगायत और भी कई दूसरे सामानों पर जीएसटी का खासा असर देखने को मिल रहा है।

वहीं बाजार में खरीददारी करने आए खरीददारों की अगर मानें, तो जीएसटी के कारण उन्‍हें भी काफी समस्‍या का सामना करना पड़ रहा है, क्‍योंकि हर सामान महंगा हो गया है। रोजेदारों का कहना है कि रोजे में सबसे खास चीज खजूर होती है, जिसे खाकर रोजा खोला जाता है और जीएसटी के कारण खजूर के दाम में भी इजाफा हो गया है। 

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दूकानदारों की मानें तो जीएसटी की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कत माल आने में हो रही है। क्योंकि अब तक कई व्यापारी पुराने और नए रेट को लेकर उलझे हुए हैं और ऑर्डर दिए लगभग डेढ़ महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन अब तक माल की सप्लाई नहीं हो पाई है। डिलीवरी न होने की वजह से रमजान में दुकानदारी करने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। यह समझ नहीं आ रहा है कि एक महीना आदमी मुनाफा कमाए या फिर इन्हीं सब झंझटों में उलझा रहे।

 

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