ज्ञानवापी-मां श्रृंगार गौरी केस: कोर्ट में हिंदू पक्ष की दलील- ज्ञानवापी में मिले पूजा-पाठ का अधिकार, हमें मुकदमों की जरूरत नहीं, कल फिर सुनवाई

संक्षेप:

  • नियमित दर्शन की याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं पर बहस जारी।
  • अधिवक्ताओं ने कहा- यह वाद किसी ढांचे के हटाने या परिवर्तन का नहीं है।
  • सुनवाई की अगली तारीख 21 जुलाई तय।

वाराणसी- वाराणसी के ज्ञानवापी स्थित श्रृंगार गौरी में नियमित दर्शन की याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं पर जिला जज की अदालत में मंगलवार को भी वादिनी पक्ष की ओर से बहस जारी रही। अधिवक्ताओं ने अदालत में दलील दी कि जहां पर जमीन कब्जा करके नमाज अदा की जाती है, उसे खुदा कभी कबूल नहीं करते हैं।

जारी बहस के बीच जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने सुनवाई की अगली तारीख 21 जुलाई तय कर दी। इस दिन भी हिंदू पक्ष के अधिवक्ता अपनी बहस को आगे बढ़ाएंगे। वादिनी राखी सिंह के अधिवक्ता मानबहादुर सिंह ने अदालत में कहा कि मुगल शासक औरंगजेब ने महज मंदिर गिराने का आदेश दिया था, मगर कुछ स्थानीय लोगों ने अवैध कार्य कर दिया।

तो नहीं होगी मुकदमे की जरूरत
पहले यह स्पष्ट होना चाहिए कि विवादित ढांचा किस धर्म का स्थान है। हमारा वाद सिर्फ दर्शन पूजन का है, जिसे राज्य सरकार ने जबरदस्ती डंडे व खाकी के बल पर बिना किसी विधिक आदेश के रोक दिया है। कानून हाथ मे लेना उचित नहीं है, इसलिये हम कोर्ट की शरण में आए है। अधिवक्ताओं ने कहा कि सरकार बैरिकेडिंग हटा लें तो पूजा पाठ शुरू हो जाएगी और मुकदमे की जरूरत ही नहीं है।

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यह वाद किसी ढांचे के हटाने या परिवर्तन का नहीं है। मात्र दर्शन पूजन के लिए है। वक्फ में कुछ दर्ज हो जाने से वह वक्फ प्रॉपर्टी नहीं हो जाती, उसकी इंट्री और वैधता जांचने का अधिकार कोर्ट को है। वही दूसरी तरफ अन्य पक्षकारों के विरोध के बीच वादिनी लक्ष्मी देवी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय ने भी पांच मिनट दलील रखी और कहा कि प्लेस ऑफ वर्शिप और प्लेस ऑफ प्रेयर दोनों अलग है।

प्लेस ऑफ वर्शिप में पूजा का अधिकार है जो एक बार मूर्ति स्थापित होने के बाद उसके विसर्जित होने तक बना रहता है, जबकि प्लेस ऑफ प्रेयर में प्रार्थना यानि नमाज की बात कही गई है, जिसका स्थान बदला जा सकता है।

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