प्रोफेसर काशीनाथ सिंह ने कुछ ऐसे याद किया महाकवि गोपाल दास नीरज को

संक्षेप:

  • महाकवि गोपाल दास नीरज का निधन
  • साहित्यकारों में गम का माहौल
  • प्रोफेसर काशीनाथ सिंह ने ऐसे किया याद

वाराणसी: पद्मभूषण महाकवि गोपाल दास नीरज का कल निधन होने के बाद से उनसे जुड़े साहित्यकारों में काफी गमगीन का माहौल बना हुआ है। ऐसे में उनके साथ बिताए हुए समय को लोग याद कर रहे हैं और उनके किस्से सुना रहे हैं।

इसी कड़ी में वाराणसी में महाकवि के बारे बताते हुए साहित्यकार प्रोफेसर काशीनाथ सिंह ने कहा कि कविताओं को तो कभी देखते हैं लेकिन गीतों को लोकप्रिय बनाने और जनता तक पहुंचाने का काम नीरज ने किया था। यह भी सही है कि कवि सम्मेलनों में लोकप्रिय होने के कारण उनके गीतों का मूल्यांकन आज तक नहीं हो सका। वह सिर्फ दुख दर्द और मिलन के गीतकार नहीं थे उनके गीतों में आम जनता के दुख दर्द की पीड़ाएं भी थी।

प्रो सिंह ने आगे बताया कि नीरज काशी हिंदू विश्वविद्यालय में गए थे सम्भवतः 1959 में साथ में मैं उस वक्त विद्यार्थी था, विश्वविद्यालय में एमपी थिएटर का मैदान  खचाखच भरा हुआ था । सबसे अंत में नीरज को बुलाया गया क्योंकि श्रोता उन्हें के लिए बैठे हुए थे। माइक के सामने जाते ही चारों तरफ से आवाज उठी कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे और उन्होंने सुनाया भी और गीतों के साथ साथ कुछ गजलें और यह गीत श्रोताओं की मांग होती रही और वह सुनाते रहे देर रात के बाद तक।

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वह कवि सम्मेलनों की शोभा गौरव और परंपरा थी। जैसी गद्य कविताएं लिखी जा रही थी वे उनके पक्षधर नहीं थे स्थिति यह हो गई थी की आम जनता के बीच गीतों के माध्यम से साहित्य को लोकप्रिय बनाने उन्होंने जनसाधारण की धारणा बन गई थी कि जो गाया है वह गीत है और वही कविता दूसरी बार भी आए थे वह और उसमें भी उनके नाम पर ही भीड़ आई थी उनके कविताएं और गीतों को सुनाने का अंदाज निराला था ।

उनकी नकल बहुत से लोगों ने करने की कोशिश की लेकिन कोई कर नहीं पाया क्या अंदाज था उनका शायरी और गज़लों को प्रतिष्ठित करने की कल आप इनमे शायरों के समानांतर मुशायरा और कवि सम्मेलन यानी मुशायरे के समानांतर कवि सम्मेलन को गंभीरता से लिया जाने लगा तो उसका श्रेय गोपालदास नीरज को है क्योंकि मुशायरा ज्यादा मशहूर हुआ करता था कैफ़ी आज़मी थे कॉमिक थे सरदार जाफरी थे बहुत सारे लोग थे लेकिन उनके समानांतर प्रतिष्ठित किया सभी सम्मेलन तो नहीं है इसमें गंभीरता दिखते थे वह दर्शकों के स्वर में उनके गीतों को कविता नहीं होने दिया उन्हें गीतकार के रूप में ही जाना गया कवि के रूप में नहीं जबकि गीतों में वह कवि थे।

वह हिंदी गीतों के इतिहास पुरुष थे वह घर बैठ गए और कवि सम्मेलन खत्म हो गया अब गोष्ठियां हुआ करते हैं कवि सम्मेलन के नाम पर भर्ती होती है लेकिन सही में कवि सम्मेलन के नाम पर देश सुनाने वाले लोग नहीं रहे।

प्रोसेसर काशीनाथ सिंह ने नीरज की सबसे बेहतरीन लाइनों का जिक्र करते हुए कहा कि वह कारवां थे जो गुजर गया वह खुद में कारवां थे। एक बार नीरज पराड़कर स्मृति भवन में आए थे मैं जा नहीं पाया था मैंने उसे कभी करीब से मुलाकात नहीं की लेकिन मैंने उनको मंचों से सुना है। उन्होंने जो फिल्मों में गीत लिखे वह फिल्मों के गीतों से भिन्न न थे यानी वहां वे अपनी शर्तों पर ही गीत लिखते थे वस्तुतः वह कारवां ही थे जो गुजर गया और हम सब बैठे राह गए।

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