वाराणसी ने दी पूरे दुनिया को योग का तोहफा, महर्षि पतंजलि ने यहीं से की थी योगसूत्र की शुरुआत

संक्षेप:

  • काशी ने दी पूरी दुनिया को योग की सौगात
  • महर्षि पतंजलि ने यही लिखी थी योगसूत्र
  • योगसूत्र ने पूरी दुनिया को दिखाई नई राह

वाराणसी- संपूर्ण भारत को अपने ज्ञान, कला और संस्कृति से प्रकाशित करने वाली काशी ने ही विश्व को योग के अमृत का पान कराया था। महर्षि पाणिनी के शिष्य और साक्षात शेषनाथ के अवतार माने जाने वाले महर्षि पतंजलि ने काशी में ही योगसूत्र रचा और दुनिया को इसके ज्ञान से परिचित भी कराया था।

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री डॉ. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि काशी में ही छोटे गुरु महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र की रचना की थी। योग के आठ अंगों को ही उन्होंने जैतपुरा मोहल्ले के नागकूप में एक सूत्र में पिरोया था। पूरी दुनिया रोगों से मुक्ति के लिए अगर किसी एक विद्या पर पूरी तरह आशा भरी निगाहों से देख रही है तो वह योगसूत्र है जिसे तकरीबन दो हजार साल पहले महर्षि पतंजलि ने लिखा था। इससे पहले योग का ज्ञान श्रुतियों और स्मृतियों में बिखरा हुआ था। योगसूत्र में महर्षि पतंजलि ने मन को एकाग्र करने और ईश्वर में लीन होने का विधान बताया है। मान्यता है कि महर्षि पतंजलि साक्षात भगवान शेषनाग के अवतार हैं। 

महर्षि पतंजलि एक महान चिकित्सक भी थे, इन्हें ही दुनिया की पहली डॉक्टरी की किताब चरक संहिता का प्रणेता भी माना जाता है। इन्हें रसायन विद्या का विशिष्ट आचार्य भी माना जाता है। अभ्रक, धातुयोग और लौहशास्त्र महर्षि पतंजलि की ही देन है। इन्होंने महर्षि पाणिनी के अष्टाध्यायी का महाभाष्य भी लिखा है। इसके साथ ही आयुर्वेद के कई ग्रंथों की रचना का श्रेय भी महर्षि पतंजलि को ही  जाता है।

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महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योगसूत्र की लोकप्रियता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि मध्यकाल में ही इसका तकरीबन 40 भारतीय भाषाओं सहित जावा तथा अरबी भाषा में भी अनुवाद किया गया था। यह महान ग्रंथ 12वीं से 19वीं शताब्दी तक मुख्यधारा से गायब हो चुका था जिसे 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश काल के दौरान दोबारा ढूंढा गया और धीरे-धीरे पूरी दुनिया में इसे स्वीकार किया जाने लगा। 

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