भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा के प्रमुख स्थल

उत्तर प्रदेश का वो ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन स्थल जो लम्बे समय से प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति का केन्द्र है। हम बात कर रहे हैं श्रीकृष्ण जन्म भूमि मथुरा की। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा। मथुरा को आध्यात्मिक स्थल माना जाता है और कई लोग शान्ति और ज्ञान की तलाश में यहां आश्रमों और मंदिरों की ओर रुख करते हैं।

मथुरा रेल, सड़क और हवाई यात्रा द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। आइये करते हैं मथुरा दर्शन:-


1. द्वारिकाधीश मंदिर:- मथुरा नगरी में द्वारिकाधीश नाम का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण ग्वालियर रियासत के खजांची सेठ गोकुल दास पारीख ने 1814 में कराया था। मंदिर के मुख्य आश्रम में राधा-कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में और भी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। भगवान कृष्ण को अक्सर `द्वारिकाधीश` या `द्वारका के राजा` के नाम से पुकारा जाता है इसलिए उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का नाम रखा गया है।
यह मंदिर झूले वाले त्यौहार के लिए मशहूर है जो हर श्रावण महीने के अंत में आयोजित होता है। मान्यता है कि इसी त्यौहार के बाद बरसात का आगाज़ भी होता है। आप इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन सुबह 6.30 बजे से दोपहर 1 बजे तक और शाम 5 से रात 9.30 बजे तक कर सकते हैं। सुबह 6.30 बजे यहां मंगल आर्ती भी होती है।


2. पोतरा कुण्डः- श्रीकृष्ण जन्मभूमि आए तो उसके पीछे पोतरा कुण्ड को ज़रूर देखें। यह एक बेहद विशाल और गहरा कुण्ड है। कहा जाता है कि यहाँ श्री कृष्ण के जन्म के समय उनके वस्त्रों को धोया गया था।


3. विश्राम घाट:- यह घाट द्वारिकाधीश मन्दिर से 30 मीटर की दूरी पर, नया बाज़ार में स्थित है। यह मथुरा के 25 घाटों में से एक प्रमुख घाट है। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण के मामा कंस के वद्ध के बाद कृष्ण ने यहीं पर विश्राम किया था तभी से इस घाट का नाम विश्राम घाट हो गया। इस घाट के उत्तर में 12 और दक्षिण में 12 घाट है। यहां अनेक सन्तों ने तपस्या की एवं अपना विश्राम स्थल बनाया। विश्राम घाट पर यमुना महारानी का काफी सुंदर मंदिर स्थित है। यमुना महारानी की आरती विश्राम घाट से ही की जाती है। शाम के समय जब यहां आरती होती है तो यहां की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। अपनी इसी खूबसूरती के कारण विश्राम घाट हमेश से ही देश-विदेश के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता रहा है।


4. श्री कृष्ण जन्मभूमि:- कृष्ण जन्म भूमि मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है जहां भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। अगर आप यहां के दर्शन करने के इच्छुक है तो आपको बता दें कि कृष्ण जन्मभूमि के खुलने का समय सुबह 5 से दोपहर 12 बजे तक और दोपहर 2 से रात 8 बजे तक है।
श्री कृष्ण जन्मभूमि पर एक विशाल श्रीमद् भागवत भवन है जिसमें श्री राधा कृष्ण, श्री लक्ष्मीनारायण एवं जगन्नाथजी के विशाल मनोहर दर्शन हैं। यहां पारे का एक शिवलिंग है जो कि आकर्षण का केंद्र है। अगर आप राम लीला देखने के इच्छु हैं तो क्वार के महीने में यहाँ आए क्योंकि इन दिनों रंगमंच पर मनमोहक श्री राम लीलाएँ होती हैं।


5. पुरातत्व संग्रहालयः- मथुरा का पुरातत्व संग्रहालय पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहाँ कुषाण कालीन के अनेक महत्वपूर्ण अवशेष संग्रहीत हैं। ४थी ई. पूर्व से लेकर १२वीं ई. शताब्दी तक की मूर्तियां आप यहां देख सकते हैं जिनमें हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की प्रतिमाएं शामिल हैं। इसी के साथ श्री कृष्ण जन्म स्थान एवं कंकाली टीले से खुदाई के दौरान प्राप्त हुए अनेकों प्राचीन अवशेष यहाँ मौजूद हैं।


6. बिड़ला मन्दिरः- यह मंदिर मथुरा वृन्दावन मार्ग पर है जो बिड़ला द्वारा बनवाया गया है। मन्दिर में पंञ्चजन्य शंख एवं सुदर्शन चक्र लिए हुए श्री कृष्ण भगवान, सीताराम एवं लक्ष्मीनारायणजी की मूर्तियाँ बड़ी मनोहारी हैं। यहां आकर्षण का केंद्र है एक स्तंभ जिसपर सम्पूर्ण "श्रीमद् भगवद्गीता" लिखी हुई है।


7. कुछ और मंदिरः- इसी के साथ-साथ मथुरा में और भी कई प्राचीन मंदिर हैं जिनका अपना एक अलग ही महत्त्व है। आइए जानते हैं कुछ और मंदिरों के बारे मेंः


जैन-चौरासी-
यह मंदिर इसलिए चर्चित है क्योंकि यहां हर वर्ष जैन मेला लगता है। जैन-चौरासी मन्दिर का स्थल प्राचीन है। कहा जाता है कि जैन गुरु जम्बू स्वामी ने यहाँ तपस्या की थी।
दशभुजी गणेश मन्दिर-
श्री द्वारिकाधीश मंदिर के पीछे गली में गणेश भगवान का मंदिर है जिसमें आप भगवान श्री गणेश के विशाल एवं भव्य विग्रह रुप में दर्शन कर सकते हैं।
श्रीनाथजी का मन्दिर-
मानिक चौक में ही श्री नाथजी की भव्य प्रतिमा वाला मन्दिर है। पाषाण की जाली-झरोखों की कलात्मकता देखने योग्य है। बल्ल्भ सम्प्रदायी इस मन्दिर का निर्माण कुल्लीमल वैश्य द्वारा कराया गया हैं।
वाराहजी का मन्दिर-
वाराहजी के मन्दिर के लिए द्वारिकाधीश जी की बगरिया होकर जाते हैं। यहाँ मानिक चौक में वाराह भगवान की बहुत ही चित्ताकर्षक प्रतिमा विराजमान है।
गताश्रम नारायण मन्दिर-
गताश्रम नारायण मंदिर में भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा स्थापित है जिसका निर्माण रामानुज सम्प्रदाय के आचार्य श्रीप्राणनाथ शास्री ने सं. १८५७ में किया था।
श्री लक्ष्मीनारायण का मन्दिर-
छप्रा बाजार में लक्ष्मीनारायण मन्दिर मूँगाजी के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर की काफी मान्यता है और यहां श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं। वहीं इस मंदिर के सामने ही श्री कन्हैयालालजी का मन्दिर भी है। छप्रा बाज़ार में श्री गोवर्धन नाथजी का मन्दिर भी है जहां श्री गोवर्धन नाथजी के सुन्दर श्यामल विग्रह रुप के दर्शन हैं।
श्री दाऊजी, मदनमोहन एवं गोकुलनाथजी के मन्दिर
राम घाट (बंगाली घाट) पर यह तीनों मन्दिर स्थित है। इन मन्दिरों की वास्तुकला तो आकर्षक नहीं है, लेकिन मान्यता की दृष्टि से इन प्राचीन मंदिरों का बहुत अधिक महत्व है। गुजराती यात्रियों के लिए ये आकर्षण का केन्द्र हैं।
श्री राम मन्दिर
यह मंदिर सेठ भीकचन्द गली में स्थित है। इस मन्दिर में रामनवमी का महोत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। यहां श्री राम और अष्टभुजी गोपालजी के दर्शन कर सकते हैं।

 

 

 

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