केजरीवाल का धरनाः सीएम बनने से पहले और सीएम बनने के बाद कितने बदल गए 'आम' आदमी

संक्षेप:

  • LG के वेटिंग रूम में सोए धरना किंग केजरीवाल
  • केजरीवाल क्या वाकई धरने का मर्म जानते हैं
  • नौकरशाही और केजरीवाल सरकार के बीच तकरार

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रिमंडल सहयोगी तीन मांगों को लेकर उप राज्यपाल अनिल बैजल के घर के बाहर धरने पर बैठे हैं. केजरीवाल और उनके कुछ मंत्रियों ने कल अनिल बैजल के दफ्तर के वेटिंग रूम में सोकर रात गुजारी है. कल अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और दो अन्य मंत्री उपराज्यपाल अनिल बैजल से मिले थे. केजरीवाल के धरने के बाद एलजी आवास छावनी में तब्दील हो चुका है. सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं. बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है. दरअसल केजरीवाल आईएएस अधिकारियों को हड़ताल खत्म करने का निर्देश देने, चार महीनों से कामकाज रोक कर रखे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और उनकी सरकार की ‘डोर स्टेप डिलीवरी ऑफ राशन’ योजना के प्रस्ताव को मंजूरी देने सहित तीन मांगें की है. जिसके लिए वो धड़ने पर बैठे हैं.

केजरीवाल का ये धरना भी समय के साथ बदल सा गया है. आम आदमी पार्टी (आप) अब `आम आदमी` नहीं रही, बल्कि `खास` पार्टी हो गई है और इस लिए अब धरना भी खास हो चला है. आप देख सकते है कि वीवीआईपी अंदाज में केजरीवाल और उनके साथी धरना दे रहे हैं.

ये भी पढ़े : राम दरबार: 350 मुस्लिमों की आंखों में गरिमयी आंसू और जुबां पर श्री राम का नाम


ये वहीं केजरीवाल हैं जो सीएम बनने से पहले रामलीला मैदान या जंतर मंतर पर आम आदमी के तरह धरने पर बैठा करते थे. लेकिन समय के साथ-साथ धरना भी वीवीआईपी हो चला है.

केजरीवाल क्या वाकई धरने का मर्म जानते हैं

धरना राजनीति में महारत हासिल कर चुके केजरीवाल निश्चित तौर पर देश में धरने के इतिहास और जन्म के बारे में जानते ही होंगे. भारतीय राजनीति में उपवास, धरना प्रदर्शन, हड़ताल और असहयोग को महत्वपूर्ण औजार बनाने का काम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शुरू किया था. गांधी जी के पास इन सब चीजों की आध्यात्मिक वजहें तो थी हीं, साथ ही यह भी उद्देश्य था कि सरकार से हिंसक तरीके से मांग मनवाने की कोशिश करने के बजाय अहिंसक तरीके से बात मंगवाने का दबाव डाला जाए. गांधी जी ने जो परंपरा विकसित की, उसमें इस तरह के विरोध की पूर्व सूचना सरकार, प्रशासन और संबंधित व्यक्ति को देने का रिवाज बन गया.

बापू तो यहां तक कहते थे कि वे अपने विरोधियों के खिलाफ कभी उपवास पर नहीं बैठेंगे. क्योंकि ऐसा उपवास ब्लैकमेलिंग होगा. गांधी उन लोगों को जगाने के लिए उपवास पर बैठते थे जो उनके अपने होते थे, और उपवास का मकसद उन लोगों की अंतरात्मा को जगाकर हृदय परिवर्तन करना होता था. गांधी ने एक बार यहां तक कहा कि वे जनरल डायर के खिलाफ उपवास नहीं करेंगे, क्योंकि डायर उन्हें अपना दुश्मन मानते हैं. केजरीवाल और उपराज्यपाल के मामले में दुश्मनी का रिश्ता तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन अविश्वास का रिश्ता तो है ही. यह अविश्वास आने वाले समय में रिश्तों को न सिर्फ बिगाड़ेगा, बल्कि केजरीवाल के साथ उच्च स्तरीय बैठकों की संभावनाएं भी कम करेगा.

मूक दर्शक केंद्र किस काम का

ऐसा नहीं है कि केजरीवाल सिर्फ बैजल से ही परेशान हों, इसके पहले उपराज्यपाल रहे नजीब जंग से भी उनकी रोज तू-तू मैं-मैं हुआ करती थी. कानूनी बारीकियां चाहे कुछ भी हों, लेकिन एक गलत संदेश तो जाता ही है. हालांकि इस मामले में गलती केंद्र सरकार की भी है. केंद्र सरकार इस तरह मूकदर्शक बन जाती है, जैसे दिल्ली की जनता के प्रति उसकी कोई जवाबदेही नहीं है. जब दिल्ली सरकार का मुखिया उपराज्यपाल है और उपराज्यपाल की रिपोर्टिंग केंद्र सरकार को है, तो केंद्र को हस्तक्षेप या मध्यस्थ की भूमिका निभानी ही चाहिए. केंद्र इस अर्ध राज्य को इस तरह से नहीं छोड़ सकता. लेकिन चाहे एमसीडी कर्मचारियों की हड़ताल हो, चाहे चीफ सेक्रेटरी का मामला हो, या अब आइएएस अफसरों की कथित हड़ताल हो, हर बार केंद्र खामोश सा नजर आया. तीनों पक्षों का व्यवहार ऐसा लगता है कि जैसे उन सबका अलग-अलग एजेंडा हो. और तीनों के एजेंडा से जनता गायब हो. जबकि तीनों पक्षों की आज की जो हैसियत है, वह जनता की ही कृपा से है. सबका राजधर्म, जनहित होना चाहिए.

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Kanpur की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।

Related Articles