उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज किया विपक्ष का महाभियोग प्रस्ताव

संक्षेप:

  • CJI दीपक मिश्रा पर नहीं चलेगा महाभियोग
  • वेंकैया नायडू ने खारिज किया कांग्रेस का नोटिस
  • कांग्रेस ने CJI पर लगाए थे ये 5 आरोप

कानपुर: उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पद से हटाने संबंधी कांग्रेस तथा अन्य दलों की ओर से दिए गए महाभियोग प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है. उपराष्ट्रपति ने नोटिस पर अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल सहित संविधानविदों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ सोमवार को इस मामले को लेकर विचार-विमर्श किया था. नोटिस को खारिज करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि सीजेआई पर लगाए गए सभी आरोप गलत हैं. उन्होंने कहा कि, `मैंने प्रस्ताव में सीजेआई पर लगाए गए पांचों आरोपों और उसके संबंध में पेश किए गए दस्तावेजों को परखा. कोई भी तथ्य सीजेआई के खराब बर्ताव की पुष्टि नहीं करता है.`

महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस के ठुकराए जाने के बाद कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. कांग्रेस की ओर से पहले ही ये कह दिया गया था कि यदि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ दिए गए महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ठुकराते हैं तो पार्टी सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती है.

कांग्रेस ने प्रस्ताव के ठुकराए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उपराष्ट्रपति ने वैसा ही किया जैसी उन्हें उम्मीद थी. उन्होंने कहा कि वेंकैया नायडू ने अपने दौरे से लौटते ही फैसला सुना दिया. कांग्रेस के नेता पी.एल पुनिया ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, `ये एक बेहद गंभीर मसला है. हमें नहीं पता कि किस आधार पर नोटिस को खारिज किया गया. कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस मालमे को लेकर कानून के किसी जानकार से सलाह लेंगे, उसके बाद आगे उठाए जाने वाले कदम के बारे में सोचा जाएगा.`

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कांग्रेस चाहती है प्रधान न्यायाधीश हो जाएं न्यायिक उत्तरदायित्व से अलग

उप राष्ट्रपति को महाभियोग का नोटिस देने के बाद कांग्रेस के नेताओं की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि, कांग्रेस इस उम्मीद के साथ प्रधान न्यायाधीश पर नैतिक दबाव बना रही है कि महाभियोग प्रस्ताव पेश किए जाने पर वह अपने न्यायिक उत्तरदायित्व से अलग हो जाएंगे. कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि पहले भी महाभियोग का सामना करने वाले न्यायाधीश न्यायिक कार्य से अलग हुए थे और प्रधान न्यायाधीश को भी यही करना चाहिए.

कांग्रेस ने CJI पर लगाए थे ये 5 आरोप

राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू को महाभियोग का जो प्रस्ताव कांग्रेस ने दिया था, उसमें उन्होंने सीजेआई दीपक मिश्रा पर पांच आरोप लगाए-.

-विपक्षी दलों ने कहा कि पहला आरोप प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट से संबंधित हैं. इस मामले में संबंधित व्यक्तियों को गैरकानूनी लाभ दिया गया. इस मामले को प्रधान न्यायाधीश ने जिस तरह से देखा उसे लेकर सवाल है. यह रिकॉर्ड पर है कि सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की है. इस मामले में बिचौलियों के बीच रिकॉर्ड की गई बातचीत का ब्यौरा भी है.प्रस्ताव के अनुसार इस मामले में सीबीआई ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति नारायण शुक्ला के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की इजाजत मांगी और प्रधान न्यायाधीश के साथ साक्ष्य साझा किये. लेकिन उन्होंने जांच की इजाजत देने से इनकार कर दिया . इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए.

-दूसरा आरोप उस रिट याचिका को प्रधान न्यायाधीश द्वारा देखे जाने के प्रशासनिक और न्यायिक पहलू के संदर्भ में है जो प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में जांच की मांग करते हुए दायर की गई थी.

-कांग्रेस और दूसरे दलों का तीसरा आरोप भी इसी मामले से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि यह परंपरा रही है कि जब प्रधान न्यायाधीश संविधान पीठ में होते हैं तो किसी मामले को शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश के पास भेजा जाता है. इस मामले में ऐसा नहीं करने दिया गया.

-प्रधान न्यायाधीश पर चौथा आरोप गलत हलफनामा देकर जमीन हासिल करने का लगाया है. प्रस्ताव में पार्टियों ने कहा कि न्यायमूर्ति मिश्रा ने वकील रहते हुए गलत हलफनामा देकर जमीन ली और 2012 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने के बाद उन्होंने जमीन वापस की, जबकि उक्त जमीन का आवंटन वर्ष 1985 में ही रद्द कर दिया गया था.

-पांचवा आरोप है कि प्रधान न्यायाधीश ने उच्चतम न्यायालय में कुछ महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील मामलों को विभिन्न पीठ को आवंटित करने में अपने पद एवं अधिकारों का दुरुपयोग किया.

उल्लेखनीय है कि शुक्रवार (21 अप्रैल) को कांग्रेस सहित सात विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति नायडू को न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ कदाचार का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए नोटिस दिया था. वेंकैया नायडू अगर इस नोटिस को स्वीकार करते तो प्रक्रिया के नियमों के अनुसार विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच के लिए न्यायविदों की तीन सदस्यों की एक समिति का गठन किया जाता.

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