Forest Fire: 54 जगहों पर 34 हेक्टेयर जंगल जलकर हुए राख, वन्यजीव जंगल छोड़ने को मजबूर

संक्षेप:

  • जंगलों की आग अब बेकाबू होती जा रही है।
  • 54 जगहों पर आग लगने से 34 हेक्टेयर जंगल जलकर राख
  • दावानल पर काबू पाने के लिए 250 से ज्यादा फायर वाचर जुटे।
  • सबसे भीषण आग भवाली रेंज के जंगलों में लगी।

 

नैनीताल: भीमताल। उत्तराखंड में जंगलों की आग अब बेकाबू होती जा रही है। आग पर काबू पाने के लिए सरकार कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है, लेकिन प्रदेशभर में जंगल की आग रुकने का नाम नहीं ले रही है। जिले में सोमवार को 54 जगहों पर आग लगने से 34 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गए। सबसे भीषण आग भवाली रेंज के जंगलों में लगी हुई है। आग से वन संपदा को काफी नुकसान पहुंचा है। वन्यजीव भी जंगल छोड़ने को मजबूर हैं। वहीं भवाली रेंज के महेशखान, सातताल, रामगढ़, मुक्तेश्वर, जूनस्टेट, भगत्यूड़ा, गागर आदि जंगल लगातार धधक रहे हैं। बेतालघाट, ओखलकांडा, भीमताल और धारी के जंगल में भी आग से मौसम में धुंध है। दावानल पर काबू पाने के लिए वन विभाग की टीम के साथ 250 से ज्यादा फायर वाचर जुटे हुए हैं। 15 वाहनों से पेट्रोलिंग भी की जा रही है। जंगलों में आग लगाने वाले की जानकारी देने पर वन विभाग संबंधित व्यक्ति को 10  हजार रुपये इनाम देगा।

ओर तो ओर रविवार देर रात नैनीताल के पास देवीधुरा ग्राम पंचायत के ज्योसूड़ा और जमीरा तोक के बीच जंगल में लगी आग पर सोमवार दिन तक काबू पाया जा सका। खुर्पाताल क्षेत्र में लगी आग पर भी काबू पा लिया गया है। डोबा की पहाड़ी में आग लगने से वन संपदा को नुकसान पहुंचा है। मनोरा रेंज के अधिकारी बीएस मेहता ने बताया कि आग बुझाने के लिए टीम 24 घटे तैनात है। डीएफओ टीआर बीजूलाल ने बताया कि जिले में 54 जगहों पर 34 हेक्टेयर जंगल में आग लगने से वन संपदा को नुकसान पहुंचा है। विभाग की टीम और फायर वॉचर आग बुझाने में जुटे हुए हैं।

552 हेक्टेयर जंगल को पहुंच चुका नुकसान

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हल्द्वानी। कुमाऊं में वनाग्नि की 395 घटनाएं हो चुकी हैं, इसमें 552 हेक्टेयर से अधिक जंगल प्रभावित हुआ है। कुमाऊं में आरक्षित, वन पंचायत, सिविल वन हैं। हालांकि प्लांटेशन वाले क्षेत्र में भी काफी नुकसान हुआ है।

फायर सीजन से पहले होती थी वनों की सफाई

भीमताल। 90 के दशक तक फायर सीजन से पहले जंगलों से पिरूल और सूखी घास की साफ-सफाई का जिम्मा ग्रामीण खुद संभालते थे। इसके बाद भी वनों में आग लगती थी तो ग्रामीण उसपर काबू पाने के लिए एकजुट हो जाते थे। हरी टहनियों और पानी से ग्रामीण सामूहिक रूप से आग पर काबू पाते थे।

 


 

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