नैनीताल: कैदियों के संतानोत्पत्ति के अधिकार के मामले में हाईकोर्ट करेगा विचार, अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी

संक्षेप:

  • कैदियों के संतानोत्पत्ति के अधिकार के मामले में हाईकोर्ट करेगा विचार
  • याचिका सामूहिक दुष्कर्म के दोषी कैदी की पत्नी ने डाली है
  • अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी

देहरादून। आठ साल पहले हल्द्वानी में एक नाबालिक लड़की से सामूहिक दुष्कर्म के प्रकरण में केद आरोपीयों के संतानोत्पत्ति के अधिकार से संबंधित याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट विचार करेगा। याचिका सामूहिक दुष्कर्म के दोषी कैदी की पत्नी ने डाली है। हाईकोर्ट याचिका में उठाए गए कई पहलुओं पर भी मंथन करेगा। इसमें पत्नी और भविष्य में जन्म लेने वाले बच्चे का अधिकार भी शामिल होगा। मामले की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी। 

वर्ष 2013 में हल्द्वानी में एक नाबालिग लड़की के साथ हुआ था सामूहिक दुष्कर्म

दरअसल, हाईकोर्ट के समक्ष एक कैदी की पत्नी की ओर से संतानोत्पत्ति की इच्छा का हवाला देते हुए अल्पकालिक जमानत के लिए अर्जी दी गई है। मामले में इससे पहले 2016 में निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ एक जमानत अपील हाईकोर्ट में दायर की गई थी। वर्ष 2013 में हल्द्वानी में एक नाबालिग लड़की को स्कूल जाते समय कुछ मोटरसाइकिल सवारों ने अगवा कर लिया था। आरोपियों ने उसे एक ट्रक में ले जाकर उसके हाथ पैर बांधकर उसके साथ दुष्कर्म किया। आरोपी सचिन समेत तीन आरोपियों को पॉक्सो अधिनियम में दोषी पाया गया था।

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सजा सुनाए जाने के समय आरोपी के विवाह को तीन महीने हो चुके थे

आरोपी को 20 साल, तीन साल और एक साल के सश्रम कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ने 2017 और 2020 में सचिन की जमानत की अपील भी खारिज कर दी थी। मौजूदा अर्जी में कहा गया है कि उसके पति को कारावास की सजा सुनाए जाने के समय आरोपी के विवाह को तीन महीने हो चुके थे। अब उसे कारावास में रहते सात साल से अधिक हो चुके हैं। संतानोत्पत्ति का पत्नी को भी अधिकार है लिहाजा पति को अंशकालिक जमानत दी जाए। 

इस तरह का अधिकार देने में अन्य अनेक बिंदु भी विचारणीय हो जाते हैं: कोर्ट

मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह का अधिकार देने में अन्य अनेक बिंदु भी विचारणीय हो जाते हैं। जहां एक तरफ जन्म लेने वाले बच्चे का भविष्य बिना पिता के मुश्किल होगा, वहीं दूसरी तरफ परिवार के अधिकार से इनकार करना संभवतया कानून के उद्देश्य की पूर्ति न करे। ऐसे मामलों में पत्नी के अधिकारों पर भी विचार किया जाना आवश्यक होगा। मामले के अन्य कानूनी और सामाजिक पहलुओं को भी ध्यान में रखना होगा। यह भी विचारणीय है कि संतानोत्पत्ति के बाद बच्चे की मां सरकार से बच्चे के पालन पोषण के लिए नौकरी की भी मांग कर सकती है। कोर्ट ने मामले में न्याय मित्र जेएस विर्क से ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इंग्लैंड और अमेरिका में इस तरह के मामलों में प्रचलित व्यवस्था की जानकारी के साथ अपनी राय भी देने को कहा। कोर्ट में यह भी चर्चा हुई कि पूर्व में पटना हाईकोर्ट ने भी ऐसे एक प्रकरण में आजीवन कारावास के कैदी को इस आधार पर पैरोल की इजाजत दी थी।

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