वाराणसी: बाहुबली अतीक अहमद ने बिगाड़ा गणित, बीजेपी को हो सकता फायदा, गठबंधन को नुकसान!

संक्षेप:

  • बाहुबली नेता अतीक अहमद के चुनाव मैदान में उतरने से विपक्षी पार्टियों का समीकरण बिगड़ता दिख रहा है
  • जानकारों की मानें तो अतीक के चलते मुस्लिम मतों का बिखराव हो सकता है
  • इसका फायदा बीजेपी और नुकसान विपक्षी दलों को उठाना पड़ेगा

वाराणसी: एक बार फिर अतीक अहमद वाराणसी सीट से मैदान में हैं. बाहुबली नेता अतीक अहमद के चुनाव मैदान में उतरने से विपक्षी पार्टियों का समीकरण बिगड़ता दिख रहा है. जानकारों की मानें तो अतीक के चलते मुस्लिम मतों का बिखराव हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इसका फायदा बीजेपी और नुकसान विपक्षी दलों को उठाना पड़ेगा.

2014 में केजरीवाल को 2 लाख 9 हजार वोट मिले थे

दरअसल 2014 में आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल को 2,09,238 मत मिले थे, इनमे मुस्लिम मतदाता भी शामिल हैं. सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस इसी वोट को अपने पाले में करने की जुगत में है. लेकिन अतीक के मैदान में उतरने से इन वोटों में वह भी सेंधमारी करेगा. यह स्थिति बीजेपी के लिए अनुकूल होगी, जबकि गठबंधन और कांग्रेस को नई रणनीति बनानी होगी.

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2004 में अतीक अहमद फूलपुर लोकसभा सीट से जीतकर सांसद बने थे

दरअसल 2004 में अतीक अहमद फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंचे थे. इसके बाद से उनकी भूमिका हमेशा से ही वोट कटवा के तौर पर ही रही. 2014 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर श्रावस्ती लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें बीजेपी के दद्दन मिश्रा से एक लाख वोटों से हार मिली. 2017 में सपा ने उन्हें कानपुर कैंट से टिकट दिया लेकिन प्रयागराज के शुआट्स में मारपीट के आरोप में उनका टिकट काट दिया गया.

मुस्लिम मत में बिखराव से बीजेपी को होगा फायदा

2018 में हुए लोकसभा उपचुनाव में अतीक अहमद ने फूलपुर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा. हालांकि उपचुनाव में अतीक को जीत तो नहीं मिली लेकिन माना गया कि उन्होंने सपा प्रत्याशी की जीत के अंतर को कम कर दिया. दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव में मुरली मनोहर जोशी बीजेपी प्रत्याशी थे. उस दौरान माफिया डॉन मुख़्तार अंसारी बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे. जोशी को उस चुनाव में करीब 17 हजार वोटों से जीत हासिल हुई थी. इसके बाद 2014 में जब नरेंद्र मोदी यहां से चुनावी मैदान में थे तो मुस्लिम मतों के विभाजन को रोकने के लिए मुख़्तार ने चुनाव नहीं लड़ा. लेकिन एक बार फिर अतीक के मैदान में होने से मुस्लिम मतों में बिखराव तय माना जा रहा है.

 

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